गुरू
वचन अनुसार, जीव
का लक्ष्य ईश्वर है,
और
माया उस मेँ बाधा है.
सीता-राम
नाम जाप, इस
क्षेत्र में काफी प्रचलित
है, जिसमे
सीता जी माया प्रतीक है,
और
राम जी ईश्वर है.
माया
जीव को मोहीत कर के,
मोक्ष
से दुर कर, विभिन्न
योनीयों का चक्कर कटाती है.
एक प्रकाशित लेख के अनुसार, चुनाव
में "जीते
को जग मिलता है और हारे को हरी
नाम”! यहां
जग माया प्रतीक है,
और
हरी नाम ईश्वर के सत्ता मे आस्था!.
शास्त्र अनुसार,
ईश्वर
के सत्ता में ८४ लाख योनी है.
ईश्वर
इन सभी योनीयों में आत्मा को
पहुंचाना चाहते है.
तो
क्या वें ज्यादा लोगो को मोक्ष
(जन्म-मृत्यु
के चक्र से मुक्ती)
देना
नहीं चाहते ? मोक्ष
का अधिकारी क्या केवल
मनुष्य है ? इसका
उत्तर तो
एक ईश्वर प्राप्त गुरू ही दे
सकते है.
माया
बहुत शक्तिशाली है,
और
मनुष्य को सुख और दुख में फंसा
हंसाती-रूलाती
रहती है.
भक्तीमार्ग के
एक कवि अनुसार, “मेरा
मन कहां, सुख
पावे, जैसे,
उरी
जहाज की पंक्षी, फिरी
जहाज पर आवे“. मन
के भटकाव के कारण,
मनुष्य
बहुत कुछ करता है, करना
चाहता है, पर
सत्य को पूर्ण रूप से न समझ
पा, और
विभिन्न समस्याओं का सामना
करने पड़, उसे
ईश्वर की शरण लेनी परती है.
वैदिक
साहित्य में, हम
ब्रह्मा, विष्णु
और महेश को सर्वोच्च त्रिमूर्ति
के रूप में जानते हैं,
लेकिन
उनके बीच वर्चस्व के लिए
सह-प्रतिस्पर्धा
का भी उल्लेख है।वैदिक
ज्योतिष में सूर्य और बृहस्पति
के बीच मित्रता और संघर्ष का
भी उल्लेख है।हमें
जैसे-जैसे
पृथ्वी पर विभिन्न समुदायों
के बारे में ज्ञान बढ़ता गया,
हम
भगवान के बारे में कई विश्वासों
और कल्पनाओं को समझे है।
शास्त्र
अनुसार हमें सभी
सजीव-निर्जीव/जड़-चेतन
में ईश्वर को देखना
है, पर
किसी चीज से मोह करने से बचने का भी सलाह देती है,
पर मोह,
माया,
काम,
क्रोध,
लोभ,
इत्यादी तो
देवो के ही अस्त्र-शस्त्र
रहें हैं!
मोह
के
जाल में स्वयं ब्रह्मा,
विष्णु
और महेश जैसे देव
भी फंसते रहें हैं,
इसका
प्रमाण रामायण,
महाभारत
जैसे ग्रंथो में मिलता है।
ईश्वर
का अवतार तो कुछ समय के लिये
एक बहुत ही साधारण जीव में भी
हो सकता है!
यह
प्रकृति और समय के मांग पर
निर्भर
करता है। इस से कर्म का महत्व
जन्म से ज्यादा लगता है। पर
जन्म का महत्व ज्योतिष शास्त्र
मे अधीक है। इसी जन्म में भी अनेक जन्म
हो सकता है,
जो
कि,
ज्ञान
और सौभाग्य के आने-जाने
पर निर्भर करता है।
जेल (बंधन): एक
बार कुछ लोगो से बात चीत हुइ,
जिस
में कुछ ख्याती प्राप्त गुरू
जिन पर अपराधिक मामला चला है,
और
जो जेल में है का जिक्र हुआ।
मेरा मत था कि,
बहुत
बार देखा हुआ भी झुठ निकल जाता
है, तो
समाचार में आय हर बात को गम्भीरता
से नहीं लिया जा सकता. विष्णु
सहस्त्रनाम में "सर्व
प्रहरणायुध ॐ नम
इति“ का उल्लेख है। विष्णु
जी को बहुत लोग और जीव का पेट
भरना है.
आस्तिक
और नास्तिक दोनो ही ईश्वर/भाग्य
का सहयोग चाहते हैं.
कभी
प्रभु न्याय व्यवस्था से जुड़े
लोगो की पुकार पहले सुन लेते
है. धन-संपत्ती का लोभ गुरू को भी हो
सकता है.
हम
सभी कोई न कोई बंधन में बंधे
हुये है.
जैसे
कि रोग,
पद,
उम्र, कर्म
बंधन,
वैवाहिक,
समाजिक,
परिवारिक,
ऋण, इत्यादि. हर
बंधन कुछ लेता है और कुछ देता
है.
जेल
बंधन,
दर्शाता
है कि उस व्यक्ति का समाज में
जगह नहीं है,
और
उसे दंडाधिकारी के आधीन रहना
है.
यह
बंधन ज्यादा कठोर हो सकता है,
पर
ईशवर पर श्रद्धा रखने वालो
के लिये यह एक कठिन परिक्षा
के समान है.
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