Sunday, May 19, 2019

रीगा चीनी मिल


रीगा चीनी मिल के प्रबंधन की समस्या है कि, चीनी का बाजार भाव, लागत के दाम से कम है। गन्ना और मजदुरी का मुल्य बढ़ा है, पर उस अनुपात में चीनी का मुल्य नहीं! रीगा चीनी मिल के शेयर (हिस्सेदारी) का दाम भी बहुत कम है। कंपनी पर कर्ज बोझ भी काफी अधीक है। शेयर का वर्तमान दाम, मूल दाम से कम होना, दर्शाति है कि कंपनी निवेशकों का मन/भरोसा नहीं जीत पा रही है। पर मेरी जानकारी में, सीतामढ़ी का यह एक मात्र कंपनी है, जिसका शेयर बाॅम्बे स्टौक एक्सचेंज पर है। और यह किसान, मजदुर से जुड़ी कंपनी है, इस लिये मुझे इस से काफी उम्मीद है।

सुना था कि, कंपनी किसान को गन्ने का मुल्य में, पैसे के बदले, चीनी दे रही है । इसका एक और समाधान है कि कंपनी किसान को गन्ने का मुल्य और मजदुर को मजदुरी के कुछ पैसे के साथ, कुछ शेयर दे । शेयर का अंकित मूल्य (Face value) और वर्तमान दाम (Market value) में जो ज्यादा हो, वही खर्चे का निपटारा में लागु हो । डीमैट खाता का प्रबंध बैंक या कंपनी स्वयं कर सकती है।

वैसे तो शेयर बाजार में बुद्धी के प्रयोग की प्रबलता है, पर मेरा यह भी मानना है कि भावनात्मक रूप से हर व्यक्ति को अपने क्षेत्र की कंपनी का कुछ शेयर लेना चाहिये।

चीनी का दाम, लागत से कम क्यों है ?
  • चीनी का मुल्य, सरकार द्वारा नियंत्रित है।
  • कुछ कंपनी, कम लागत में चीनी बना कर, सीतामढ़ी के बाजार में बेच पा रही है।
  • दुसरे देशों से/में भी चीनी का आयात/निर्यात होता है।
  • किसान को गन्ने का सही मुल्य नहीं मिलने पर वें दुसरे फसल, जैसे कि धान, सब्जी, की खेती करेंगे। गन्ने को मिल को न देकर वे गुड़ उत्पादन या शर्बत बनाने -बेचने में लगा सकती है।
  • मजदुर को अच्छी मजदुरी न मिलने पर पलायण बढ़ेगा, और सरकार को समर्थन/वोट घटेगा और कलह/अराजकता बढ़ेगा।

सरकार के समर्थन के कारणकंपनी को काफी ऋण मिली हैऔर मिल रही है। इस लिये इस कंपनी को निवेशकों का मन जीतने की इच्छा भी नहीं है। सरकार या तो इसका ऋण माफ कर देगीया इसे ऋण चुकाने के लायक बना देगी!

Monday, May 6, 2019

ईश्वर और माया


गुरू वचन अनुसार, जीव का लक्ष्य ईश्वर है, और माया उस मेँ बाधा है.
सीता-राम नाम जाप, इस क्षेत्र में काफी प्रचलित है, जिसमे सीता जी माया प्रतीक है, और राम जी ईश्वर है.
माया जीव को मोहीत कर के, मोक्ष से दुर कर, विभिन्न योनीयों का चक्कर कटाती है.
एक प्रकाशित लेख के अनुसार, चुनाव में "जीते को जग मिलता है और हारे को हरी नाम”! यहां जग माया प्रतीक है, और हरी नाम ईश्वर के सत्ता मे आस्था!.

शास्त्र अनुसार, ईश्वर के सत्ता में ८४ लाख योनी है. ईश्वर इन सभी योनीयों में आत्मा को पहुंचाना चाहते है. तो क्या वें ज्यादा लोगो को मोक्ष (जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ती) देना नहीं चाहते ? मोक्ष का अधिकारी क्या केवल मनुष्य है ? इसका उत्तर तो एक ईश्वर प्राप्त गुरू ही दे सकते है.

माया बहुत शक्तिशाली है, और मनुष्य को सुख और दुख में फंसा हंसाती-रूलाती रहती है.
भक्तीमार्ग के एक कवि अनुसार, “मेरा मन कहां, सुख पावे, जैसे, उरी जहाज की पंक्षी, फिरी जहाज पर आवे“. मन के भटकाव के कारण, मनुष्य बहुत कुछ करता है, करना चाहता है, पर सत्य को पूर्ण रूप से न समझ पा, और विभिन्न समस्याओं का सामना करने पड़, उसे ईश्वर की शरण लेनी परती है.

वैदिक साहित्य में, हम ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सर्वोच्च त्रिमूर्ति के रूप में जानते हैं, लेकिन उनके बीच वर्चस्व के लिए सह-प्रतिस्पर्धा का भी उल्लेख है।वैदिक ज्योतिष में सूर्य और बृहस्पति के बीच मित्रता और संघर्ष का भी उल्लेख है।हमें जैसे-जैसे पृथ्वी पर विभिन्न समुदायों के बारे में ज्ञान बढ़ता गया, हम भगवान के बारे में कई विश्वासों और कल्पनाओं को समझे है। 


शास्त्र अनुसार हमें सभी सजीव-निर्जीव/जड़-चेतन में ईश्वर को देखना है, पर किसी चीज से मोह करने से बचने का भी सलाह देती है, पर मोह, माया, काम, क्रोध, लोभ, इत्यादी तो देवो के ही अस्त्र-शस्त्र रहें हैं! मोह के जाल में स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे देव भी फंसते रहें हैं, इसका प्रमाण रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथो में मिलता है। ईश्वर का अवतार तो कुछ समय के लिये एक बहुत ही साधारण जीव में भी हो सकता है! यह प्रकृति और समय के मांग पर निर्भर करता है। इस से कर्म का महत्व जन्म से ज्यादा लगता है। पर जन्म का महत्व ज्योतिष शास्त्र मे अधीक है। इसी जन्म में भी अनेक जन्म हो सकता है, जो कि, ज्ञान और सौभाग्य के आने-जाने पर निर्भर करता है।

जेल (बंधन): एक बार कुछ लोगो से बात चीत हुइ, जिस में कुछ ख्याती प्राप्त गुरू जिन पर अपराधिक मामला चला है, और जो जेल में है का जिक्र हुआ। मेरा मत था कि, बहुत बार देखा हुआ भी झुठ निकल जाता है, तो समाचार में आय हर बात को गम्भीरता से नहीं लिया जा सकताविष्णु सहस्त्रनाम में "सर्व प्रहरणायुध ॐ नम इति“ का उल्लेख है। विष्णु जी को बहुत लोग और जीव का पेट भरना है. आस्तिक और नास्तिक दोनो ही ईश्वर/भाग्य का सहयोग चाहते हैं. कभी प्रभु न्याय व्यवस्था से जुड़े लोगो की पुकार पहले सुन लेते है. धन-संपत्ती का लोभ गुरू को भी हो सकता है. हम सभी कोई न कोई बंधन में बंधे हुये है. जैसे कि रोग, पद, उम्रकर्म बंधन, वैवाहिक, समाजिक, परिवारिक, ऋणइत्यादिहर बंधन कुछ लेता है और कुछ देता है. जेल बंधन, दर्शाता है कि उस व्यक्ति का समाज में जगह नहीं है, और उसे दंडाधिकारी के आधीन रहना है. यह बंधन ज्यादा कठोर हो सकता है, पर ईशवर पर श्रद्धा रखने वालो के लिये यह एक कठिन परिक्षा के समान है.